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"काहे होखत बाड़ू अतना अधीर धनिया / विजेन्द्र अनिल" के अवतरणों में अंतर

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केकरा से करीं अरजिया हो,  
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काहे होखत बाड़ू अतना अधीर धनिया,
सगरे बटमार।
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लड़िके बदलीं जा आपन तकदीर धनिया।
  
          राजा के देखनीं, सिपहिया के देखनीं
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सहर कसबा भा गाँव, सगरे जुलुमिन के पाँव
          नेता के देखनीं, उपहिया के देखनीं,
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केहू हरी नाहीं हमनीं के पीर धनिया।
  
पइसा प सभकर मरजिया हो,  
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सगरे होता लूट-मार, नइखे कतहीं सरकार
सगरे बटमार।
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ठाढ़ होखs पोंछ अँखिया के नीर धनिया।
  
          देखनी कलट्टर के, जजो के देखनीं
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जेकरा दउलत बेसुमार, ओकरे सहर ह सिंगार,
          राजो के देखनीं आ लाजो के देखनीं,  
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दीन-दुखियन के सहर, गँगा-तीर धनिया।
  
कमवा बा सभकर फरजिया हो,  
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घिरल घाटा घनघोर, नइखे लउकत अँजोर,  
सगरे बटमार।
+
अब त करे के बा, कवनो तदबीर धनिया।
  
          देस भइल बोफर्स के तोप नियन सउदा
+
छोड़ सपना के बात, धरs धरती प लात,  
          लोकतंत्र नाद भइल, संविधान हउदा,
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मिलि-जुलि तूरे के बा अपने जँजीर धनिया।                     
 
+
कइसे भराई करजिया हो,
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सगरे बटमार।
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+
          छप्पर गो छूरी से गरदन रेताइल
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          साँपन के दूध अउर लावा दिआइल,
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गाई जा नयका तरजिया हो,
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सगरे बटमार।
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केकरा से करीं अरजिया हो,
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सगरे बटमार।
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'''रचनाकाल : 07.2.1988'''
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'''रचनाकाल : 22.10.1991'''
 
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17:50, 13 सितम्बर 2017 का अवतरण

काहे होखत बाड़ू अतना अधीर धनिया,
लड़िके बदलीं जा आपन तकदीर धनिया।

सहर कसबा भा गाँव, सगरे जुलुमिन के पाँव
केहू हरी नाहीं हमनीं के पीर धनिया।

सगरे होता लूट-मार, नइखे कतहीं सरकार
ठाढ़ होखs पोंछ अँखिया के नीर धनिया।

जेकरा दउलत बेसुमार, ओकरे सहर ह सिंगार,
दीन-दुखियन के सहर, गँगा-तीर धनिया।

घिरल घाटा घनघोर, नइखे लउकत अँजोर,
अब त करे के बा, कवनो तदबीर धनिया।

छोड़ सपना के बात, धरs धरती प लात,
मिलि-जुलि तूरे के बा अपने जँजीर धनिया।
                         
रचनाकाल : 22.10.1991