भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इज़्ज़तपुरम्-61 / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=इज़्ज़तपुरम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:18, 18 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण
हाथ पर हो रोटी
और रोटी पर
कच्चे-पक्के
आलू के
उबले टुकड़े
फूटे कटोरें में
कभी सूखा भात
भरे आधा पेट
लड़ाई सारी रात की
जिस्मानी काले खेत की
मिट्टी ही दूसरी
घूप-घटा-मौसम
से वो क्या बँधे?
जब चाहे / जो चाहे
जैसे भी चाहे पिल पड़े
बाँह-पे-बाँह
हराई-पे-हराई
हल की नुकीली
नोक के नीचे
परत-दर-परद
उखड़ती रहे