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मैं अनन्त पथ में लिखती जो | मैं अनन्त पथ में लिखती जो | ||
− | सस्मित सपनों की बातें | + | सस्मित सपनों की बातें, |
उनको कभी न धो पायेंगी | उनको कभी न धो पायेंगी | ||
− | अपने आँसू से रातें | + | अपने आँसू से रातें! |
उड़ उड़ कर जो धूल करेगी | उड़ उड़ कर जो धूल करेगी | ||
− | मेघों का नभ में अभिषेक | + | मेघों का नभ में अभिषेक, |
अमिट रहेगी उसके अंचल | अमिट रहेगी उसके अंचल | ||
− | में मेरी पीड़ा की | + | में मेरी पीड़ा की रेख। |
तारों में प्रतिबिम्बित हो | तारों में प्रतिबिम्बित हो | ||
− | मुस्कायेंगीं अनन्त आँखें | + | मुस्कायेंगीं अनन्त आँखें, |
− | होकर सीमाहीन शून्य में | + | होकर सीमाहीन, शून्य में |
− | मंड़रायेंगी | + | मंड़रायेंगी अभिलाषें। |
+ | वीणा होगी मूक बजाने | ||
+ | वाला होगा अन्तर्धान, | ||
+ | विस्मृति के चरणों पर आकर | ||
+ | लौटेंगे सौ सौ निर्वाण! | ||
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+ | जब असीम से हो जायेगा | ||
+ | मेरी लघु सीमा का मेल, | ||
+ | देखोगे तुम देव! अमरता | ||
+ | खेलेगी मिटने का खेल! | ||
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22:24, 12 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
मैं अनन्त पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बातें,
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें!
उड़ उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक,
अमिट रहेगी उसके अंचल
में मेरी पीड़ा की रेख।
तारों में प्रतिबिम्बित हो
मुस्कायेंगीं अनन्त आँखें,
होकर सीमाहीन, शून्य में
मंड़रायेंगी अभिलाषें।
वीणा होगी मूक बजाने
वाला होगा अन्तर्धान,
विस्मृति के चरणों पर आकर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण!
जब असीम से हो जायेगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव! अमरता
खेलेगी मिटने का खेल!