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बहती जिस नक्षत्रलोक में | बहती जिस नक्षत्रलोक में |
22:25, 12 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
बहती जिस नक्षत्रलोक में
निद्रा के श्वासों से बात,
रजतरश्मियों के तारों पर
बेसुध सी गाती है रात!
अलसाती थीं लहरें पीकर
मधुमिश्रित तारों की ओस,
भरतीं थीं सपने गिन गिनकर
मूक व्यथायें अपने कोप।
दूर उन्हीं नीलमकूलों पर
पीड़ा का ले झीना तार,
उच्छ्वासों की गूँथी माला
मैनें पाई थी उपहार!
यह विस्मॄति है या सपना वह
या जीवन विनिमय की भूल!
काले क्यों पड़ते जाते हैं
माला के सोने से फूल?