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"झूठ-सच / राकेश पाठक" के अवतरणों में अंतर
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सच यह है की कुछ भी सच नहीं
झूठ यह है की कुछ भी सच नहीं
इस सच और झूठ में
एक सच यह है कि
कोई भी सच नही, कोई भी झूठ नहीं
हाँ पर एक सच यह जरूर है कि
हम सच
समझने
सुनने
और महसूस करने के
काबिल अभी तक नहीं हुए !
सच को समझना
उस अंतस को समझना है
जो है ही नहीं कहीं
न किसी कोने में
न किसी के पास
सिवाय झूठ-सच और ग़फ़लत के !