भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं से हम / राकेश पाठक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:55, 14 अक्टूबर 2017 का अवतरण
इस अंतस्थ में कितना कोलाहल है
कितना कुछ भर रखा है अंदर में हमनें
सुनो बुद्ध, विवेक के व्यतिकरण के लिए आये थे इसी सलिल तट
वृक्ष के नीचे यहीं झरी थी ज्ञान की ऊंझा
आओ इस तट पर सम हो लेते है
आओ अपने "मैं " से "हम" हो लेते है !