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"मैं से हम / राकेश पाठक" के अवतरणों में अंतर

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इस अंतस्थ में कितना कोलाहल है
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इस अंतस्थ में  
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कितना कोलाहल है
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कितना कुछ भर रखा है अंदर में हमनें
 
कितना कुछ भर रखा है अंदर में हमनें
सुनो बुद्ध, विवेक के व्यतिकरण के लिए आये थे इसी सलिल तट
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वृक्ष के नीचे यहीं झरी थी ज्ञान की ऊंझा
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सुनो,  
आओ इस तट पर सम हो लेते है
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बुद्ध विवेक के व्यतिकरण के लिए  
आओ अपने "मैं " से "हम" हो लेते है !
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आये थे इसी सलिल तट
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वृक्ष के नीचे  
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यहीं झरी थी ज्ञान की ऊंझा
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आओ  
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इस तट पर सम हो लेते हैं
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आओ अपने मैं से  
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हम हो लेते हैं !
 
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17:20, 14 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

इस अंतस्थ में
कितना कोलाहल है

कितना कुछ भर रखा है अंदर में हमनें

सुनो,
बुद्ध विवेक के व्यतिकरण के लिए
आये थे इसी सलिल तट

वृक्ष के नीचे
यहीं झरी थी ज्ञान की ऊंझा

आओ
इस तट पर सम हो लेते हैं
आओ अपने मैं से
हम हो लेते हैं !