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"शहर / सुरेश चंद्रा" के अवतरणों में अंतर

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16:17, 19 अक्टूबर 2017 का अवतरण

शहर
सुबह चहचहाता है, उम्मीद सा

शहर, दिन के शोर मे
कोशिश सा चीखता है

शाम से ही, साध लेता है, चुप्पी, ये शहर
ख़ामोश करता है, नुख्त की सब बोलियाँ

इस शहर के शब औ’ सहर का सिलसिला
मुझ सा ही है सादिक़, और तुम सा ही है !!