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"समय की उस स्निग्धता में / सुरेश चंद्रा" के अवतरणों में अंतर
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− | केवल हम दो बचे | + | केवल हम दो बचे |
− | जो बाँट सकते थे | + | जो बाँट सकते थे |
− | एक दूसरे से, एक दूसरे को | + | एक दूसरे से, एक दूसरे को |
− | पूरे का पूरा | + | पूरे का पूरा |
− | कह सकते थे | + | कह सकते थे |
− | सौंपना है सब, अब | + | सौंपना है सब, अब |
− | सारे का सारा | + | सारे का सारा |
− | समय की उस स्निग्धता में | + | समय की उस स्निग्धता में |
− | हमने | + | हमने एक होना तय कर लिया. |
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13:43, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
और जब
पूरी दुनिया में
केवल हम दो बचे
जो बाँट सकते थे
एक दूसरे से, एक दूसरे को
पूरे का पूरा
कह सकते थे
सौंपना है सब, अब
सारे का सारा
समय की उस स्निग्धता में
हमने एक होना तय कर लिया.