भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितनी भीड़ में रहते हो / सुरेश चंद्रा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश चंद्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
कितनी भीड़ में रहते हो  
 
कितनी भीड़ में रहते हो  
 
तब वो, अब ये, जाने जब
 
तब वो, अब ये, जाने जब
कब-कब, क्या ??
+
कब-कब, क्या?
  
 
कितने चेहरे, जिस्म, तिलिस्म  
 
कितने चेहरे, जिस्म, तिलिस्म  
ऊब जाते हो पर थकते नही
+
ऊब जाते हो पर थकते नहीं
  
 
वही कवायद हर सुबह से शाम
 
वही कवायद हर सुबह से शाम
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
आज बह जाना फिर किसी ज़र्द रंग में
 
आज बह जाना फिर किसी ज़र्द रंग में
  
रोज़ फ़हम को फाख्ता वहम का फरेब
+
रोज़ फ़हम को फ़ाख्ता वहम का फ़रेब 
 
नई कमीज रोज़ाना, ख़ास्ता वैसी ही जेब
 
नई कमीज रोज़ाना, ख़ास्ता वैसी ही जेब
  
 
कितने अकेले फिरते हो, साथ अपने, ज़िन्दगी भर
 
कितने अकेले फिरते हो, साथ अपने, ज़िन्दगी भर
मुक़म्मल दिखाते हुये झूठे, हर-एक-एक बात पर
+
मुक़म्मल दिखाते हुए झूठे, हर एक-एक बात पर
  
 
तुम किस से चाहते हो मरहम और सुकून
 
तुम किस से चाहते हो मरहम और सुकून
सब जल जल धुँआ होगा, ज़ज़्बा, सुकून
+
सब जल-जल धुँआ होगा, ज़ज़्बा, सुकून
  
तुम किस को, सच,लगने दोगे अपनी हवा
+
तुम किस को, सच, लगने दोगे अपनी हवा
 
न कोई, हो भी सकेगा, उम्र भर, तुम्हारी दवा
 
न कोई, हो भी सकेगा, उम्र भर, तुम्हारी दवा
  
 
कितनी भीड़ में रहते हो
 
कितनी भीड़ में रहते हो
 
तब वो, अब ये, जाने जब  
 
तब वो, अब ये, जाने जब  
कब-कब, क्या ??
+
कब-कब, क्या?
  
 
</poem>
 
</poem>

13:58, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

कितनी भीड़ में रहते हो
तब वो, अब ये, जाने जब
कब-कब, क्या?

कितने चेहरे, जिस्म, तिलिस्म
ऊब जाते हो पर थकते नहीं

वही कवायद हर सुबह से शाम
ज़द्दोज़हद वही वही रात भर

कल तंगहाल चेहरे से फिर मुस्कुराना
आज बह जाना फिर किसी ज़र्द रंग में

रोज़ फ़हम को फ़ाख्ता वहम का फ़रेब
नई कमीज रोज़ाना, ख़ास्ता वैसी ही जेब

कितने अकेले फिरते हो, साथ अपने, ज़िन्दगी भर
मुक़म्मल दिखाते हुए झूठे, हर एक-एक बात पर

तुम किस से चाहते हो मरहम और सुकून
सब जल-जल धुँआ होगा, ज़ज़्बा, सुकून

तुम किस को, सच, लगने दोगे अपनी हवा
न कोई, हो भी सकेगा, उम्र भर, तुम्हारी दवा

कितनी भीड़ में रहते हो
तब वो, अब ये, जाने जब
कब-कब, क्या?