भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मैं खाते हुए गुलकंद का पान
इलायची रख देती थी तुम्हारी कत्थई जिव्हा जिह्वा पर.
यही संकेत था
जनेऊ और मेरी चांदी चाँदी के कमरबंद की उलझन का.
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits