भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सृष्टि जब-जब सृजन के गीत गाती है / राकेश पाठक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:25, 20 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

उस नवजात के पैरों में पीले फूल गुदे थे
और हाथों में मोरपंख

जब उसने पैर उठाये थे
सरसराती हवा का रंग भी पीले फूल सा खिल गया था

जब हाथ हिलाए तो
व्योम में बादल प्रेमगीत गाते हुए विहँस रहे थे

जब मुस्कुराया तो सबकुछ रुक गया था
यहां तक ईश्वर का मौन भी

सृष्टि जब-जब सृजन के गीत गाती है
सबकुछ थम जाता है.