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"क्या मुझे पहचान लोगी / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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मिल गये उस जन्म में संयोगवश यदि, | मिल गये उस जन्म में संयोगवश यदि, | ||
क्या मुझे पहचान लोगी? | क्या मुझे पहचान लोगी? | ||
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चौंककर चंचल मृगी सी धर तुरत दो चार पल पग, | चौंककर चंचल मृगी सी धर तुरत दो चार पल पग, | ||
कहो प्रिय, क्या देखते ही खोल गृह-पट आ मिलोगी? | कहो प्रिय, क्या देखते ही खोल गृह-पट आ मिलोगी? | ||
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खुली लट होगी तुम्हारी झूमती मुख चूमती सी, | खुली लट होगी तुम्हारी झूमती मुख चूमती सी, | ||
कहो प्रिय, क्या आ ललककर पुलक आलिंगन भरोगी? | कहो प्रिय, क्या आ ललककर पुलक आलिंगन भरोगी? | ||
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कहो, क्या इस जन्म की सब लोक-लज्जा, | कहो, क्या इस जन्म की सब लोक-लज्जा, | ||
प्राण, मेरे हित वहाँ तुम त्याग दोगी? | प्राण, मेरे हित वहाँ तुम त्याग दोगी? | ||
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जब विरह के युग बिता, युग-प्रेमियों के उर मिलेंगे। | जब विरह के युग बिता, युग-प्रेमियों के उर मिलेंगे। | ||
कौन जाने कल्प कितने बाहु-बन्धन में बंधेंगे? | कौन जाने कल्प कितने बाहु-बन्धन में बंधेंगे? | ||
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कहेंगे दृग-अधर हँस-मिल अश्रुमय अपनी कहानी, | कहेंगे दृग-अधर हँस-मिल अश्रुमय अपनी कहानी, | ||
एक हो शम कम्प उर के मौन हो-होकर सुनेंगे? | एक हो शम कम्प उर के मौन हो-होकर सुनेंगे? | ||
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प्रलय होगी, सिन्धु उमड़ेंगे हृदय में, | प्रलय होगी, सिन्धु उमड़ेंगे हृदय में, | ||
चेत होगा, फिर नयी जब सृष्टि होगी! | चेत होगा, फिर नयी जब सृष्टि होगी! | ||
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09:00, 26 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
मिल गये उस जन्म में संयोगवश यदि,
क्या मुझे पहचान लोगी?
चौंककर चंचल मृगी सी धर तुरत दो चार पल पग,
कहो प्रिय, क्या देखते ही खोल गृह-पट आ मिलोगी?
खुली लट होगी तुम्हारी झूमती मुख चूमती सी,
कहो प्रिय, क्या आ ललककर पुलक आलिंगन भरोगी?
कहो, क्या इस जन्म की सब लोक-लज्जा,
प्राण, मेरे हित वहाँ तुम त्याग दोगी?
जब विरह के युग बिता, युग-प्रेमियों के उर मिलेंगे।
कौन जाने कल्प कितने बाहु-बन्धन में बंधेंगे?
कहेंगे दृग-अधर हँस-मिल अश्रुमय अपनी कहानी,
एक हो शम कम्प उर के मौन हो-होकर सुनेंगे?
प्रलय होगी, सिन्धु उमड़ेंगे हृदय में,
चेत होगा, फिर नयी जब सृष्टि होगी!