भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात बीते हम न होंगे / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatGeet}} | {{KKCatGeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | हम न होंगे | + | सुनो सजनी |
− | + | रात-बीते हम न होंगे | |
− | + | पर सुबह होगी | |
− | + | कोई पंछी | |
− | + | आम्रवन से तुम्हें टेरेगा | |
− | + | उसे दुलराना | |
− | नदी | + | जल रहा है यह दिया |
− | + | जो द्वार पर | |
+ | नदी में इसको सिराना | ||
− | + | पाँव छूना | |
− | + | घाट पर तुमको मिले | |
− | + | यदि कोई जोगी | |
− | + | पुण्य वह | |
− | + | हमको मिलेगा, सच | |
− | + | धूप होंगे हम | |
− | + | हाँ, तुम्हारे पास ही होंगे | |
− | + | जब तुम्हारी आँख | |
+ | होगी नम | ||
− | हम | + | हम छुएँगे तुम्हें |
− | + | तुम हँसना | |
− | + | वह छुवन तो बेवज़ह होगी | |
− | + | बनोगी तुम भी | |
− | + | सुबह की ओस ऐसे ही | |
− | + | किसी दिन कल | |
− | + | देह हम होंगे नहीं | |
+ | आकाश होंगे | ||
+ | या कि बहता जल | ||
− | + | और साँसें | |
− | + | ये नहीं होंगी | |
− | + | जो रहीं ता-उम्र हैं ढोंगी | |
</poem> | </poem> |
11:33, 30 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
सुनो सजनी
रात-बीते हम न होंगे
पर सुबह होगी
कोई पंछी
आम्रवन से तुम्हें टेरेगा
उसे दुलराना
जल रहा है यह दिया
जो द्वार पर
नदी में इसको सिराना
पाँव छूना
घाट पर तुमको मिले
यदि कोई जोगी
पुण्य वह
हमको मिलेगा, सच
धूप होंगे हम
हाँ, तुम्हारे पास ही होंगे
जब तुम्हारी आँख
होगी नम
हम छुएँगे तुम्हें
तुम हँसना
वह छुवन तो बेवज़ह होगी
बनोगी तुम भी
सुबह की ओस ऐसे ही
किसी दिन कल
देह हम होंगे नहीं
आकाश होंगे
या कि बहता जल
और साँसें
ये नहीं होंगी
जो रहीं ता-उम्र हैं ढोंगी