"धंधा / नाज़िम हिक़मत" के अवतरणों में अंतर
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जब सूरज की पहली किरणें पड़ती हैं मेरे बैल की सींगों पर, | जब सूरज की पहली किरणें पड़ती हैं मेरे बैल की सींगों पर, | ||
− | खेत जोत रहा होता हूँ मैं सब्र और शान के | + | खेत जोत रहा होता हूँ मैं सब्र और शान के साथ। |
− | प्रेम से भरी और नम होती है धरती मेरे नंगे | + | प्रेम से भरी और नम होती है धरती मेरे नंगे पाँवों के तले। |
चमकती हैं मेरी बाहों की मछलियाँ, | चमकती हैं मेरी बाहों की मछलियाँ, | ||
− | दोपहर तलक मैं पीटता हूँ लोहा | + | दोपहर तलक मैं पीटता हूँ लोहा — |
− | लाल रंग का हो जाता है | + | लाल रंग का हो जाता है अन्धेरा। |
दोपहर की गरमी में तोड़ता हूँ जैतून, | दोपहर की गरमी में तोड़ता हूँ जैतून, | ||
− | उसकी पत्तियाँ दुनिया में सबसे | + | उसकी पत्तियाँ दुनिया में सबसे ख़ूबसूरत हरे रंग की : |
− | सर से पाँव तलक नहा उठता हूँ रोशनी | + | सर से पाँव तलक नहा उठता हूँ रोशनी में। |
हर शाम बिला नागा आता है कोई मेहमान, | हर शाम बिला नागा आता है कोई मेहमान, | ||
खुला रहता है मेरा दरवाज़ा | खुला रहता है मेरा दरवाज़ा | ||
− | सारे गीतों के | + | सारे गीतों के लिए। |
रात में, मैं घुसता हूँ घुटनों तक पानी में, | रात में, मैं घुसता हूँ घुटनों तक पानी में, | ||
समुन्दर से बाहर खींचता हूँ जाल : | समुन्दर से बाहर खींचता हूँ जाल : | ||
− | मछलियाँ और सितारे उलझे हुए आपस | + | मछलियाँ और सितारे उलझे हुए आपस में। |
इस तरह मैं जवाबदेह हूँ | इस तरह मैं जवाबदेह हूँ | ||
दुनिया के हालात के लिए : | दुनिया के हालात के लिए : | ||
− | अवाम और धरती, अँधेरे और रोशनी के | + | अवाम और धरती, अँधेरे और रोशनी के लिए। |
तो तुम देख सकती हो, मैं गले तक डूबा हुआ हूँ काम में, | तो तुम देख सकती हो, मैं गले तक डूबा हुआ हूँ काम में, | ||
− | + | ख़ामोश रहो प्रिय, समझो तो सही | |
− | बहुत मसरूफ़ हूँ तुम्हारे प्यार | + | बहुत मसरूफ़ हूँ तुम्हारे प्यार में। |
− | '''अनुवाद : मनोज पटेल''' | + | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल''' |
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21:34, 4 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
जब सूरज की पहली किरणें पड़ती हैं मेरे बैल की सींगों पर,
खेत जोत रहा होता हूँ मैं सब्र और शान के साथ।
प्रेम से भरी और नम होती है धरती मेरे नंगे पाँवों के तले।
चमकती हैं मेरी बाहों की मछलियाँ,
दोपहर तलक मैं पीटता हूँ लोहा —
लाल रंग का हो जाता है अन्धेरा।
दोपहर की गरमी में तोड़ता हूँ जैतून,
उसकी पत्तियाँ दुनिया में सबसे ख़ूबसूरत हरे रंग की :
सर से पाँव तलक नहा उठता हूँ रोशनी में।
हर शाम बिला नागा आता है कोई मेहमान,
खुला रहता है मेरा दरवाज़ा
सारे गीतों के लिए।
रात में, मैं घुसता हूँ घुटनों तक पानी में,
समुन्दर से बाहर खींचता हूँ जाल :
मछलियाँ और सितारे उलझे हुए आपस में।
इस तरह मैं जवाबदेह हूँ
दुनिया के हालात के लिए :
अवाम और धरती, अँधेरे और रोशनी के लिए।
तो तुम देख सकती हो, मैं गले तक डूबा हुआ हूँ काम में,
ख़ामोश रहो प्रिय, समझो तो सही
बहुत मसरूफ़ हूँ तुम्हारे प्यार में।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल