भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाने मन क्यूँ भाग रहा है / अनीता सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatGeet}}
 
{{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
चलो ना
+
चलो ना  
ख़ुद को थोड़ा
+
ख़ुद को  
आजमायें॥
+
थोड़ा आजमायें॥
  
 
बैठ कर तट पर यूँ ही गिनते रहें लहरें
 
बैठ कर तट पर यूँ ही गिनते रहें लहरें

11:51, 10 नवम्बर 2017 का अवतरण

चलो ना
ख़ुद को
थोड़ा आजमायें॥

बैठ कर तट पर यूँ ही गिनते रहें लहरें
या उतर जायें, इसी में और भी गहरे।
छोड़ दे ख़ुद को, मौज़ों के हवाले
खींच ले जाये भँवर या बाहर उछाले॥
ढूँढ लें मोती
संग-संग
तैरना भी
सीख जायें॥

वनों में कूकती कोयल की आवाज़ सुन आयें
मिलायें उसके स्वर से स्वर खुद को भूल जायें।
कलापी जब करे नर्तन थोड़ा-सा ठहर जाएँ
देकर ताल कदमों की, गति जीवन में ले आयें।
चाहे थिरक लें
या फिर
अकेले
गुनगुनाएं॥
 
ज़मीं से हीं पहाड़ों की ऊँचाई नाप कर देखें
करें उनपर चढ़ाई, हौसलों को माप कर देखें।
चोटी पर चढ़ें उसपार क्या है देख तो आयें
सवारी बादलों की कर थोड़े से मचल जायें।
थोड़ा आसमाँ
हक़ का
मुट्ठी में
दबा लायें॥