भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दाँत / आरती तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
छो (Sharda suman ने दाँत / आरती वर्मा पृष्ठ दाँत / आरती तिवारी पर स्थानांतरित किया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:46, 15 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

अब काटने दौड़ते हैं ,
आये हैं जो समझ आने पर
दूध के दाँत तो ले गए थे ले गए थे साथ
मासूमियत सारी

अब जो दाँत हैं
आते हैं काम,निपोरने के गाहे-बगाहे
महफ़िलों में
नकली मुस्कुराहटों से अटी जाती है दुनिया
और पीसे जाते हैं दाँत,गरीबों और मज़लूमों पे

अब सबके दाँत हो चले हैं,
हाथी की तरह
दिखाने और खाने के अलग अलग
अब दाँत काटी रोटी वाली दोस्ती भी
हिन्दी का एक मुहावरा मात्र ही रह गई
हाँ उन स्त्रियों के लिए अभी भी
जीवन में स्थायी भाव सा व्याप्त है
दाँत भींचना
सिमटे हैं बस ज़ब्त करने तक दायरे जिनके

वह तो दाँतों के काम से
माहिर है अपने हुनर में
टांक के बटन कैंची की जगह
दाँतों से ही काटती आई है धागा
जिव्हा का उपयोग वर्जित था उनके लिए
दाँत जैसे दोस्त बना लिए थे उसने
मुस्कुराते,ख़ुशी में भी और ग़म में भी

पर अब बेहाल और बेज़ार हो चुके
जिन दाँतों ने उसे उम्र भर सहारा दिया
टीसने लगे हैं अब
अब नही रहा काबू दाँतों पे
मुस्कुराहट पे,और ज़ब्त पे भी
दाँत अब रुलाने लगे है ज़ार-ज़ार
दिखाने और खाने के भी