भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"औरत की बात / विवेक चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:05, 23 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

लड़की नाचती है तो थोड़ी सी तेज हो जाती है धरती की चाल
औरत टाँक रही है बच्चे के अँगरखे पर सुनहरा गोट
तो तेज हो चली है सूरज की आग
बुढ़िया ढार रही है तुलसी के बिरवे पर पानी
तो और हरे हो चले हैं सारे जंगल
पेट में बच्चा लिए प्राग इतिहास की गुफा में
बैठी औरत
बस बाहर देख रही है
और खेत के खेत सुनहरे
गेहूँ के ढेर में बदलते जा रहे हैं।