भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अखबारों में / शशि पुरवार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पुरवार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 +
{{KKCatMadhyaPradesh}}
 
<poem>
 
<poem>
 
हस्ताक्षर की कही कहानी
 
हस्ताक्षर की कही कहानी
पंक्ति 17: पंक्ति 18:
 
झोपड़ियों की चर्चा है
 
झोपड़ियों की चर्चा है
  
रक्षक ही भक्षक बन बैठे है
+
रक्षक भक्षक बन बैठे है
 
खुले आम दरबारों में।  
 
खुले आम दरबारों में।  
  
पंक्ति 25: पंक्ति 26:
 
कंकर फँसा निगाहों में
 
कंकर फँसा निगाहों में
 
बनावटी है मीठी वाणी
 
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता व्यवहारों में।  
+
उदासीन व्यवहारों में।  
  
 
किस पतंग की डोर कटी है
 
किस पतंग की डोर कटी है

13:23, 11 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

हस्ताक्षर की कही कहानी
चुपके से गलियारों ने
मिर्च मसाला, बनती खबरे
छपी सुबह अखबारों में।

राजमहल में बसी रौशनी
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है

रक्षक भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में।

अपनेपन की नदियाँ सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीन व्यवहारों में।

किस पतंग की डोर कटी है
किसने पेंच लडाये है
दांव पेंच के बनते जाले
सभ्यता पर घिर आए है

आँखे गड़ी हुई खिड़की पर
होठ नये आकारों में।