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"हे मेरे चिर सुन्दर-अपने! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण, | + | भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण, |
− | सुभग मिटा देंगी पथ से यह तेरे मृदु चरणों का अंकन ! | + | सुभग मिटा देंगी पथ से यह तेरे मृदु चरणों का अंकन ! |
− | खोज न पाऊँगी, निर्भय | + | खोज न पाऊँगी, निर्भय |
− | आओ जाओ बन चंचल सपने! | + | आओ जाओ बन चंचल सपने! |
− | गीले अंचल में धोया सा- | + | गीले अंचल में धोया सा- |
− | राग लिए, मन खोज रहा कोलाहल में खोया खोया सा! | + | राग लिए, मन खोज रहा कोलाहल में खोया खोया सा! |
− | मोम-हृदय जल के कण ले | + | मोम-हृदय जल के कण ले |
− | मचला है अंगारों में तपने! | + | मचला है अंगारों में तपने! |
− | नुपुर-बन्धन में लघु मृदु पग, | + | नुपुर-बन्धन में लघु मृदु पग, |
− | आदि अन्त के छोर मिलाकर वृत्त बन गया है मेरा मग! | + | आदि अन्त के छोर मिलाकर वृत्त बन गया है मेरा मग! |
− | पाया कुछ पद-निक्षेपों में | + | पाया कुछ पद-निक्षेपों में |
− | मधु सा मेरी साध मधुप ने! | + | मधु सा मेरी साध मधुप ने! |
− | यह प्रतिपल तरणी बन आते, | + | यह प्रतिपल तरणी बन आते, |
− | पार, कहीं होता तो यह दृग अगम समय सागर तर जाते! | + | पार, कहीं होता तो यह दृग अगम समय सागर तर जाते! |
− | अन्तहीन चिर विरहमाप से | + | अन्तहीन चिर विरहमाप से |
− | आज चला लघु जीवन नपने!< | + | आज चला लघु जीवन नपने!</poem> |
21:24, 11 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
हे मेरे चिर सुन्दर-अपने!
भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण,
सुभग मिटा देंगी पथ से यह तेरे मृदु चरणों का अंकन !
खोज न पाऊँगी, निर्भय
आओ जाओ बन चंचल सपने!
गीले अंचल में धोया सा-
राग लिए, मन खोज रहा कोलाहल में खोया खोया सा!
मोम-हृदय जल के कण ले
मचला है अंगारों में तपने!
नुपुर-बन्धन में लघु मृदु पग,
आदि अन्त के छोर मिलाकर वृत्त बन गया है मेरा मग!
पाया कुछ पद-निक्षेपों में
मधु सा मेरी साध मधुप ने!
यह प्रतिपल तरणी बन आते,
पार, कहीं होता तो यह दृग अगम समय सागर तर जाते!
अन्तहीन चिर विरहमाप से
आज चला लघु जीवन नपने!