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"चुपचाप / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर

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11:34, 27 जून 2008 का अवतरण

आँखों के भीतर

आँसुओं की नदी है।

पलकें मूंदकर

नहाती हैं आँखें।

अपने ही आँसुओं की नदी में

दुनिया से थक कर।


ओठों के अन्दर

उपवन है,

जीते हैं-- ओठ

चुप होकर स्मृति

प्यास से जल कर

एकाकीपन की आग में।


हृदय की वसुधा में

प्रणय का निर्झर नियाग्रा है

मेरे लिए ही झरता हुआ…।