भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काया सूं बांथेड़ा कर मत / राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर' | |रचनाकार=राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर' | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= |
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} |
11:25, 22 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
काया सूं बांथेड़ा कर मत
थूं भीतर अंधारौ भर मत।
नीं बगसैला अब चींथ्योड़ा
धोखै सूं माणस नै चर मत।
जीवत माखी गिटग्यो बैरी
करियोड़ा कोल मुकर मत।
काळै मन रा पोत दिसै है
थूं सूकी मनवारां कर मत।
जीवण रौ सत जाण्यां सरसी
मौत जिनावर जैड़ी मर मत।
मून ‘मुसाफ़िर’ चेतौ कर ले
नाजोगां रै घर पग धर मत।