भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अच्छी बातें लग जाती हैं यार बुरी / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
सब अच्छे हैं 'दीप' मगर पतवार बुरी | सब अच्छे हैं 'दीप' मगर पतवार बुरी | ||
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | </poem> | + |
12:53, 23 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
अच्छी बातें लग जाती हैं यार बुरी
यानि-यानि हाँ-हाँ जी सरकार बुरी
इसे सँभाले रखना इतना आसां है?
जब-तब नीचे आती है 'दस्तार' बुरी
माना उलझन ख़ून जलाती है बेशक़
लेकिन यों भी नहीं मियाँ बेकार-बुरी
लम्हे-भर में बरसों का ख़ूँ होता है
कान बुरा है या कि फिर दीवार बुरी?
कश्ती-लंगर-दरिया-मौजें और भँवर
सब अच्छे हैं 'दीप' मगर पतवार बुरी