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"अच्छी बातें लग जाती हैं यार बुरी / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर

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सब अच्छे हैं 'दीप' मगर पतवार बुरी
 
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उस गली से जब गुज़रते हम चले जाते हैं दोस्त
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पूछ मत कितना सिसकते और पछताते हैं दोस्त!
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ज़िन्दगी को खा गयी है मस्लेहत बे-शक़, मगर
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तुम यकीं मानो कि इससे ख़ूब-तर खाते हैं दोस्त
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वक़्ते-शब घर से बुला कर के थमा कर के 'शराब'
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सुब्ह को दुनिया के हो कर तंज़-फ़रमाते हैं दोस्त
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सब नवाज़िश है तिरी ही के ख़लिश है दम-ब-दम
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पाँव पड़ते हैं चला जा, ‘अब कसम खाते हैं दोस्त’
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अब ख़ुशी मिलती नहीं है सिर्फ़ डर लगता है 'दीप'
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जब अचानक आ के साँकल, पीटते जाते हैं दोस्त
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12:53, 23 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

 

अच्छी बातें लग जाती हैं यार बुरी
यानि-यानि हाँ-हाँ जी सरकार बुरी

इसे सँभाले रखना इतना आसां है?
जब-तब नीचे आती है 'दस्तार' बुरी

माना उलझन ख़ून जलाती है बेशक़
लेकिन यों भी नहीं मियाँ बेकार-बुरी

लम्हे-भर में बरसों का ख़ूँ होता है
कान बुरा है या कि फिर दीवार बुरी?

कश्ती-लंगर-दरिया-मौजें और भँवर
सब अच्छे हैं 'दीप' मगर पतवार बुरी