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"बारिश : तीन / इंदुशेखर तत्पुरुष" के अवतरणों में अंतर
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सदा ऐसी नही रहती
यह धरती
रूखी, चिड़चिड़ और कठोर
अपने बच्चों के लिए।
पर कब तक सहे वह
घमंड़ी मेघों का ऊपर-ऊपर
उसे बिना देखे गुजर गाना
कोई कब तक सह सकता भला अपनों से
अपनी क्रुर उपेक्षा।
आखिर वह भी तो एक....
उसे भी चाहिए एक आत्मीय स्पर्श
तृषित होंठों को सिक्त करता
चुम्बन एक प्रगाढ़
जो उगा दे उसकी देह में
हरियल रोमांच
और तत्काल कैसी झटपट
मुदित मन; संभाल लेती वह
अपनी छीजती-खिरती गृहस्थी को
वह, मां जो है।