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"बेटी बेटे / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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रोटियों के ख़्वाब से चल रहा है काम
 
रोटियों के ख़्वाब से चल रहा है काम

01:26, 28 जून 2008 के समय का अवतरण

आज कल में ढल गया

दिन हुआ तमाम

तू भी सो जा सो गई

रंग भरी शाम


साँस साँस का हिसाब ले रही है ज़िन्दगी

और बस दिलासे ही दे रही है ज़िन्दगी

रोटियों के ख़्वाब से चल रहा है काम

तू भी सोजा ....


रोटियों-सा गोल-गोल चांद मुस्‍कुरा रहा

दूर अपने देश से मुझे-तुझे बुला रहा

नींद कह रही है चल, मेरी बाहें थाम

तू भी सोजा...


गर कठिन-कठिन है रात ये भी ढल ही जाएगी

आस का संदेशा लेके फिर सुबह तो आएगी

हाथ पैर ढूंढ लेंगे , फिर से कोई काम

तू भी सोजा...