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"दास्ताँ सुनो यारो लामकाँ मकीनों की / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की | बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की | ||
+ | लामकां मकीनों की, खुशनुमा जज़ीरों की | ||
+ | बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की | ||
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हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसके | हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसके | ||
− | रास आ | + | रास आ गईं जिसको सुह्बतें फ़क़ीरों की |
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सूर, जायसी, तुलसी और कबीर, ख़ुसरो को | सूर, जायसी, तुलसी और कबीर, ख़ुसरो को | ||
बेबसी से तकती हैं दौलतें अमीरों की | बेबसी से तकती हैं दौलतें अमीरों की | ||
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जिस्म की सजावट में रह गए उलझकर जो | जिस्म की सजावट में रह गए उलझकर जो | ||
रूह तक नहीं पहुँची फ़िक़्र उन हक़ीरों की | रूह तक नहीं पहुँची फ़िक़्र उन हक़ीरों की | ||
− | + | ||
− | राहे हक़ पे चलकर ही मंज़िलें मिलेंगी अब | + | राहे हक़ पे चलकर ही मंज़िलें मिलेंगी अब |
− | है नहीं जगह कोई बेसबब | + | है नहीं जगह कोई बेसबब नज़ीरों की |
− | + | ||
− | देख ले 'रक़ीब' आकर | + | हाथ ही में कातिब ने लिख दिया है मुस्तकबिल |
− | + | इल्म हो तो पढ़ लेना ये जुबां लकीरों की | |
+ | |||
+ | देख ले 'रक़ीब' आकर गर नहीं यकीं तुझको | ||
+ | इक गुनाह से पहले जिंदगी असीरों की | ||
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15:01, 29 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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दास्ताँ सुनो यारो लामकाँ मकीनों की
बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की
लामकां मकीनों की, खुशनुमा जज़ीरों की
बात हो रही है अब इल्म के ज़ख़ीरों की
हर ख़ुशी क़दम चूमे कायनात की उसके
रास आ गईं जिसको सुह्बतें फ़क़ीरों की
सूर, जायसी, तुलसी और कबीर, ख़ुसरो को
बेबसी से तकती हैं दौलतें अमीरों की
जिस्म की सजावट में रह गए उलझकर जो
रूह तक नहीं पहुँची फ़िक़्र उन हक़ीरों की
राहे हक़ पे चलकर ही मंज़िलें मिलेंगी अब
है नहीं जगह कोई बेसबब नज़ीरों की
हाथ ही में कातिब ने लिख दिया है मुस्तकबिल
इल्म हो तो पढ़ लेना ये जुबां लकीरों की
देख ले 'रक़ीब' आकर गर नहीं यकीं तुझको
इक गुनाह से पहले जिंदगी असीरों की