भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम ही, रूकी रहोगी कब तक / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह= }} {{KKCatK avita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:43, 9 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
{{KKCatK avita}}
पिंडलियों से अठखेलती
मृदु जलधारा से
सुकोमल भावनाओं को खींच
ठोस दीवारों के साये में
लौटना कौन चाहेगा
भर आंख देखने को
क्या रुकी रहेगी ओस
दूब की नोकों पर
उम्र के परों को कतरती
तुम ही
रुकी रहोगी कब तक।