भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरा भी कोई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज | + | |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |
+ | |संग्रह= मिले किनारे / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | ||
}} | }} | ||
− | [[ Category : चोका ]] | + | [[Category:चोका]] |
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
जब मैं रुका | जब मैं रुका | ||
सोचकर अकेला | सोचकर अकेला | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 27: | ||
बनता धड़कन।’ | बनता धड़कन।’ | ||
-0- | -0- | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
22:22, 10 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
जब मैं रुका
सोचकर अकेला
कि कौन मेरा?
तभी आवाज़ आई
‘इस जग में
है मेरा भी तो कोई
जो बिना बोले
मन की किताब का
हर आखर
साफ़ बाँच लेता है
किसी कोने में
दुबक जाए दु:ख
जाँच लेता है ।
उसका नेह-स्पर्श
टूटती साँस
हृदय की प्यास को
देता जीवन
यह अपनापन
बनता धड़कन।’
-0-