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"स्वप्न सभा में प्रिय तुम आना / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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रात्रि-प्रहर की इस स्वप्न सभा में प्रिय तुम आना | रात्रि-प्रहर की इस स्वप्न सभा में प्रिय तुम आना | ||
− | सतरंगी विश्राम- भवन से कभी नहीं जाना | + | सतरंगी विश्राम- भवन से कभी नहीं जाना । |
आज तक कभी मैंने मन का द्वार नहीं उढ़काया | आज तक कभी मैंने मन का द्वार नहीं उढ़काया | ||
− | अहं-सांकल न चढ़ाई न ताला कभी लगाया | + | अहं-सांकल न चढ़ाई न ताला कभी लगाया । |
− | खुले झरोखे बिछे प्रेम दरीचे सजे दर्पण | + | खुले झरोखे बिछे प्रेम- दरीचे सजे दर्पण |
− | देखो सीढ़ी चढ़कर, खाली राजा का आसन | + | देखो सीढ़ी चढ़कर, खाली राजा का आसन । |
नवकुसुमित अधर लिये हूँ शोभा तुम्ही बढ़ाना | नवकुसुमित अधर लिये हूँ शोभा तुम्ही बढ़ाना | ||
− | पदचाप रहित मंद-मंद पग-पग बढ़ते जाना | + | पदचाप रहित मंद-मंद पग-पग बढ़ते जाना । |
युग बीते प्रेम घट रीते, इन्हें भरते जाना | युग बीते प्रेम घट रीते, इन्हें भरते जाना | ||
− | कभी रनिवास जीते, षोडश शृंगार सजाना | + | कभी रनिवास जीते, षोडश शृंगार सजाना । |
सप्त सुरों की ध्वनियों में गलबहियाँ पहनाना | सप्त सुरों की ध्वनियों में गलबहियाँ पहनाना | ||
− | रोम-रोम झंकृत हो ऐसा तुम साज बजाना | + | रोम-रोम झंकृत हो ऐसा तुम साज बजाना । |
रात्रि-प्रहर की इस स्वप्न सभा में प्रिय तुम आना | रात्रि-प्रहर की इस स्वप्न सभा में प्रिय तुम आना | ||
− | सतरंगी विश्राम- भवन से कभी नहीं जाना | + | सतरंगी विश्राम- भवन से कभी नहीं जाना । |
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16:06, 17 फ़रवरी 2018 का अवतरण
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रात्रि-प्रहर की इस स्वप्न सभा में प्रिय तुम आना
सतरंगी विश्राम- भवन से कभी नहीं जाना ।
आज तक कभी मैंने मन का द्वार नहीं उढ़काया
अहं-सांकल न चढ़ाई न ताला कभी लगाया ।
खुले झरोखे बिछे प्रेम- दरीचे सजे दर्पण
देखो सीढ़ी चढ़कर, खाली राजा का आसन ।
नवकुसुमित अधर लिये हूँ शोभा तुम्ही बढ़ाना
पदचाप रहित मंद-मंद पग-पग बढ़ते जाना ।
युग बीते प्रेम घट रीते, इन्हें भरते जाना
कभी रनिवास जीते, षोडश शृंगार सजाना ।
सप्त सुरों की ध्वनियों में गलबहियाँ पहनाना
रोम-रोम झंकृत हो ऐसा तुम साज बजाना ।
रात्रि-प्रहर की इस स्वप्न सभा में प्रिय तुम आना
सतरंगी विश्राम- भवन से कभी नहीं जाना ।