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"शुभकामनाओं का शोर / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | आज फिर से बधाई-शुभकामनाओं का शोर चला है | ||
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+ | जन्म दिवस पर खड़ा प्रश्न हैं | ||
+ | विकल सत्ता के घर जश्न हैं | ||
+ | केवल झुनझुनों में घिरा है | ||
+ | कब सँभला ,जो आज गिरा है | ||
+ | तार-तार उत्तर का आँचल, कहाँ इसका छोर चला है | ||
+ | चोट और झटकों पर झटके, हर आँसू झकझोर चला है । | ||
+ | पहाड़ियों के दुखी नगर को | ||
+ | चढ़ती उतरती इस डगर को | ||
+ | अब कुछ समझ आता नहीं है | ||
+ | कोई सपन भाता नहीं है | ||
+ | पोथी-रोटी-दवा न मिली, ये जाने किस ओर चला है | ||
+ | नशे के अँधियारे में, छोड़ ये उजली भोर चला है । | ||
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16:08, 17 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
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आज फिर से बधाई-शुभकामनाओं का शोर चला है
घोषणा, भाषण,भीड़ और पुष्पगुच्छ का दौर चला है ।
जन्म दिवस पर खड़ा प्रश्न हैं
विकल सत्ता के घर जश्न हैं
केवल झुनझुनों में घिरा है
कब सँभला ,जो आज गिरा है
तार-तार उत्तर का आँचल, कहाँ इसका छोर चला है
चोट और झटकों पर झटके, हर आँसू झकझोर चला है ।
पहाड़ियों के दुखी नगर को
चढ़ती उतरती इस डगर को
अब कुछ समझ आता नहीं है
कोई सपन भाता नहीं है
पोथी-रोटी-दवा न मिली, ये जाने किस ओर चला है
नशे के अँधियारे में, छोड़ ये उजली भोर चला है ।