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"दिल के तपते सहरा में यूँ तेरी याद / साग़र पालमपुरी" के अवतरणों में अंतर

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14:24, 29 जून 2008 के समय का अवतरण

दिल के तपते सहरा में यूँ तेरी याद का फूल खिला

जैसे मरने वाले को हो जीवन का वरदान मिला


जिसके प्यार का अमृत पी कर सोचा था हो जायें अमर

जाने कहाँ गया वो ज़ालिम तन्हाई का ज़हर पिला


एक ज़रा —सी बात पे ही वो रग—रग को पहचान गई

दुनिया का दस्तूर यही है यारो! किसी से कैसा गिला


अरमानों के शीशमहल में ख़ामोशी , रुस्वाई थी

एक झलक पाकर हमदम की फिर से मन का तार हिला


सपने बुनते—बुनते कैसे बीत गये दिन बचपन के

ऐ मेरे ग़मख़्वार ! न मुझको फिर से वो दिन याद दिला


इन्सानों के जमघट में वो ढूँढ रहा है ‘साग़र’ को

अभी गया जो दिल के लहू से ग़ज़लों के कुछ फूल खिला