भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हद्द—ए—नज़र तक क्या है देख / साग़र पालमपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी }} Category:ग़ज़ल हद्द—ए—नज़र तक क्...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:59, 29 जून 2008 के समय का अवतरण
हद्द—ए—नज़र तक क्या है देख!
अश्कों का दरिया है देख!
अन्दर से बाहर तो आ
कितनी खुली हवा है देख!
माली! तेरे गुलशन की
बदली हुई फ़िज़ा है देख!
इन्सानों के जमघट में
हर कोई तन्हा है देख!
सच तो कह लेकिन सच की
कितनी सख़्त सज़ा है देख!
सूरज के पहलू में भी
छाई हुई घटा है देख!
ग़म से क्यूँ घबराता है
तेरे साथ ख़ुदा है देख!
तेरा अपना साया भी
तुझ से आज ख़फ़ा है देख!
‘साग़र’! बंद दरीचे से
आई एक सदा है देख!