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लाख गोहर फ़िशानियाँ होंगी
हम न होंगे कहानियाँ होंगी
कैसे पायेंगे हम पता अपना
ग़म की वो बेकरानियाँ होंगी
टूटे महराब गिरी दीवारें
मंदिरों की, निशानियाँ होंगी
अपना साया भी अजनबी होगा
वक़्त की ज़ुल्मरानियाँ होंगी
और होगा भी क्या महब्बत में
हाँ, मगर बदगुमानियाँ होंगी
आरज़ूओं की भीड़ में ‘साग़र’!
ज़ख़्म ख़ुर्दा जवानियाँ होंगी