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"ढील मारती लड़की / सीमा संगसार" के अवतरणों में अंतर

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तुम फेंक देते हो
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तंग गलियों के भीतर
वह थाली
+
सीलन भरे
जिसमें मैं झाँकती हूँ
+
तहखाने नुमा घर के भीतर
अपने अक्स को
+
सीढियों पर बैठी
मेरी परछाइयाँ भी
+
ढील मारती लड़कियों के
तुम्हें उद्विग्न कर देते हैं...
+
नाखूनों पर
 +
मारे जाते हैं ढील
 +
पटापट
 +
ठीक उसके सपनों की तरह
 +
जो रोज-ब-रोज
 +
मारे जाते हैं
 +
एक-एक करके
 +
अंधेरे में...
  
तुम्हारे प्रार्थना घरों के देवता
+
नहीं लिखी जाती हैं
भाग खङ़े होते हैं
+
इन पर कोई कहानियाँ
मेरी पदचाप सुनकर!
+
कविता
 +
और न ही बनती है
 +
इन पर कोई सिनेमा
 +
कि ये कोई पद्मावती नहीं
 +
जो बदल सके
 +
इतिहास के रुख को...
  
जिस कूंए से होकर मैं गुजरती हूँ
+
भूसे की तरह
खारा हो जाता है
+
ठूंस-ठूंस कर
उसका मीठा पानी
+
रखे गये संस्कार
 +
उसके माथे में
 +
भर दी जाती हैं
 +
जिसे वे बांध लेती हैं
 +
कस कर
 +
लाल रिबन से...
  
एक त्याज्य व अछूत कन्या
+
कि वह नहीं खेल सकती
होते हुए भी
+
खो-खो कबड्डी
तुम रांधते हो मेरी देह को
+
नहीं जा सकती स्कूल
मरी हुई मछलियों की तरह!
+
गोबर पाथना छोड़कर...
  
जो स्वादहीन व गंधहीन होकर भी
+
वह अपने सारे अरमानों का
तुम्हारे भोजन में
+
लगाती हैं छौंक
घुल जाती हूँ नमक की तरह...
+
कङ़ाही में
 +
और भून डालती हैं उन्हें
 +
लाल-लाल
 +
अपने सपनों को
 +
जलने से पहले...
 
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11:30, 6 मार्च 2018 के समय का अवतरण

तंग गलियों के भीतर
सीलन भरे
तहखाने नुमा घर के भीतर
सीढियों पर बैठी
ढील मारती लड़कियों के
नाखूनों पर
मारे जाते हैं ढील
पटापट
ठीक उसके सपनों की तरह
जो रोज-ब-रोज
मारे जाते हैं
एक-एक करके
अंधेरे में...

नहीं लिखी जाती हैं
इन पर कोई कहानियाँ
कविता
और न ही बनती है
इन पर कोई सिनेमा
कि ये कोई पद्मावती नहीं
जो बदल सके
इतिहास के रुख को...

भूसे की तरह
ठूंस-ठूंस कर
रखे गये संस्कार
उसके माथे में
भर दी जाती हैं
जिसे वे बांध लेती हैं
कस कर
लाल रिबन से...

कि वह नहीं खेल सकती
खो-खो कबड्डी
नहीं जा सकती स्कूल
गोबर पाथना छोड़कर...

वह अपने सारे अरमानों का
लगाती हैं छौंक
कङ़ाही में
और भून डालती हैं उन्हें
लाल-लाल
अपने सपनों को
जलने से पहले...