भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम से हम को मिले जहां के सुख सारे / रंजना वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=गुं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:22, 3 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
तुम से हम को मिले जहां के सुख सारे
लेकिन हम तो खुद से ही जीवन हारे
चन्दा सूरज नहीं मुकद्दर में तो क्या
आसमान में चमक रहे कितने तारे
डोर स्नेह की बंधी हुई थी टूट गयी
नयनों के संकेत नयन से सुन प्यारे
धरती तपती उस की प्यास बुझाने को
उमड़े बादल जल - भण्डार स्वयं वारे
नदियाँ टूट टूट कर सागर में गिरतीं
कब लहरों ने कहा सिन्धु जल को खारे
पर्वत के अंतर से फूट बहा झरना
ठहर जरा कलकल मन में गुनता जा रे
सुनता रहा जमाने की तू जीवन भर
अब तो कुछ इस दिल की भी सुनता जा रे