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"गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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− | गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते | + | गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं। |
− | परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते | + | परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं। |
− | फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं | + | फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं, |
− | जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते | + | जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं। |
− | परिंदों की नज़र से एक पल | + | परिंदों की नज़र से एक पल बस देख लो दुनिया, |
− | न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते | + | न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है। |
− | फ़लक पर सब | + | बराबर हैं फ़लक पर सब वहाँ नाज़ुक परिंदे भी, |
− | + | अगर हो सामना अक्सर विमानों को गिराते हैं। | |
− | + | ज़मीं कहती, नई पीढ़ी के पंछी भूल मत जाना, | |
− | परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते | + | परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं। |
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22:37, 4 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं।
परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं।
फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं,
जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं।
परिंदों की नज़र से एक पल बस देख लो दुनिया,
न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है।
बराबर हैं फ़लक पर सब वहाँ नाज़ुक परिंदे भी,
अगर हो सामना अक्सर विमानों को गिराते हैं।
ज़मीं कहती, नई पीढ़ी के पंछी भूल मत जाना,
परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं।