भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"थी ज़ुबाँ मुरब्बे सी होंठ चाशनी जैसे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर