भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बसन्त पंचमी / कृष्णदेव प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेष आनन्द मधुकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=कृष्णदेव प्रसाद |
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह= | |संग्रह= |
16:17, 11 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
सिसिर के हो गेल अन्त, कोइलिया कुंहुकि पुकारे ॥1॥
माघ पंचमी सुदि पहुंचल आ
आज से होत बसन्त ॥2॥ को.
तृन तरु डोले पंछी बोले
पवन किलोले दिगन्त ॥3॥ को.
कुरचइ चिंउँ चिंउँ मुदित मयनमा
जग में सुखी सब जन्त ॥4॥ को.
स्वागत रितु, वन, पवन, पखेरु
स्वागत सबके अनन्त ॥5॥ को.
नर नारी मिल फाग जगावे
होली चाहे बसन्त ॥6॥ को.
कृष्ण अबीर गुलाल उड़ावे
सुख प्रगटे एही पंथ ॥7॥ को.