भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मौसमों के रंग बिखरे / मानोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:18, 14 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

मौसमों के रंग बिखरे
रंग फागुन है पलाशी

शीत की है सांध्य बेला
हो रही उसकी विदाई,
रंग की बारात ले कर
अब बसंती सुबह आई,
हाथ में ले तक्षणी ज्यों
एक छवि सुंदर तराशी|

हो रहा मदहोश चहुँ दिक्
गंध महुआ के बिखेरे,
घुल रही रंगों से कटुता
कट रहे हिय के अंधेरे,
फिर मनी होली जहाँ में
फिर हुआ है जग प्रकाशी|