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"रस्ते में खो गये सब, मंजिल तलक न पहुँचे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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22:32, 15 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
रस्ते में खो गये सब, मंजिल तलक न पहुँचे।
आँखों में जो न डूबे, वो दिल तलक न पहुँचे।
जो पिस गये वो चमके, हाथों पे बन के मेंहदी,
यूँ तो मिटेंगे वो भी, जो सिल तलक न पहुँचे।
मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से क़त्ल होना,
पर बात ये ज़रा सी, क़ातिल तलक न पहुँचे।
घटता है प्यार अगर तो कल बढ़ भी जायेगा, बस,
जानम ये बात अपनी महफ़िल तलक न पहुँचे।
मंजिल हमें मिली है, मँझधार में, तो फिर क्यूँ,
मारे जहान ताना, साहिल तलक न पहुँचे।