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"उधर रहज़न इधर रहबर ज़ियादा / सुरेश चन्द्र शौक़" के अवतरणों में अंतर

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14:44, 10 अगस्त 2008 का अवतरण

उधर रहज़न इधर रहबर ज़ियादा

भरोसा कीजिये किस पर ज़ियादा


घरों की पासबानी फ़र्ज़ जिनका

वही अब लूटते हैं घर ज़ियादा


सफ़र का देखिये अंजाम क्या हो

मुसाफ़िर कम हैं और रहबर ज़ियादा


हया से भी सजाये रखना ख़ुद को

दमकता है यही ज़ेवर ज़ियादा


हरीफ़ों से नहीं मैं इतना ख़ाइफ़

मुझे लगता है ख़ुद से डर ज़ियादा


मिलेगी फ़त्ह किस को देखना है

उधर नेज़े इधर है सर ज़ियादा


वहाँ शीशे की है मेरी तिजारत

बरसते हैं जहाँ पत्थर ज़ियादा


उसी ने पुश्त से घोंपा है ख़ंजर

भरोसा था मुझे जिस पर ज़ियादा


जहाँ बहुतात है पहले ही ज़र की

बरसता है वहाँ ही ज़र ज़ियादा


वहाँ ऐ ‘शौक़’! ख़ुश्बू ढूँढता हूँ

जहाँ कागज़ के हैं पैकर ज़ियादा


हरीफ़=शत्रु; ख़ाइफ़=भयभीत; तिजारत=व्यापार; पुश्त=पीठ; ज़र=धन; बहुतात= भरमार; पैकर=जिस्म