भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रोज़ ये ख़्वाब डराता है मुझे / विकास शर्मा 'राज़'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़' }} {{KKCatGhazal}} <poem> रोज़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:22, 25 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

रोज़ ये ख़्वाब डराता है मुझे
कोई साया लिए जाता है मुझे

ये सदा काश ! उसी ने दी हो
इस तरह वो ही बुलाता है मुझे

मैं खिंचा जाता हूँ सहरा की तरफ़
यूँ तो दरिया भी बुलाता है मुझे

देखना चाहता हूँ गुम होकर
क्या कोई ढूँढ के लाता है मुझे

मैं ही कमज़ोर इरादे का हूँ
छत का पंखा तो बुलाता है मुझे

इश्क़ बीनाई बढ़ा देता है
जाने क्या-क्या नज़र आता है मुझे