भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़र्द पेड़ों को हरे ख़्वाब दिखाना चाहें / विकास शर्मा 'राज़'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़' }} {{KKCatGhazal}} <poem> ज़र्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:35, 25 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

ज़र्द पेड़ों को हरे ख़्वाब दिखाना चाहें
रुत के बहरूप शिकारी तो निशाना चाहें

हम तो मज़दूर हैं सहरा के, बना ही देंगे
जितना वीरान इसे आप बनाना चाहें

दश्त आदाब तलब करता है आने वालो
वो जुनूँ करते हुए आएँ जो आना चाहें।

एक ग़ोता भी लगाने की नहीं है क़ुव्वत
और ये लोग समन्दर से ख़ज़ाना चाहें

शेरगोई में तो यूँ काम नहीं चल सकता
ख़र्च कुछ भी न करें और कमाना चाहें