भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चल रहे थे नज़र जमाये हम / विकास शर्मा 'राज़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़' }} {{KKCatGhazal}} <poem> चल रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:57, 25 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
चल रहे थे नज़र जमाये हम
मुड़ के देखा तो लड़खड़ाये हम
खोलता ही नहीं कोई हमको
रह न जाएँ बँधे-बंधाये हम
प्यास की दौड़ में रहे अव्वल
छू के दरिया को लौट आये हम
एक ही बार लौ उठी हमसे
एक ही बार जगमगाये हम
जिस्म भर छाँव की तमन्ना में
उम्र भर धूप में नहाये हम