भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क़ाफ़िले से अलग चले हम लोग / विकास शर्मा 'राज़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKRachna |रचनाकार=विकास शर्मा 'राज़' }} {{KKCatGhazal}} <poem> क़ाफ़िले...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:29, 25 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
क़ाफ़िले से अलग चले हम लोग
सुर्ख़ियों में बने रहे हम लोग
देखिये, कब तलक रहेंगे साथ
एक-से हैं मिज़ाज के हम लोग
सुब्ह ! क़ुर्बान तेरे चेहरे पर
रात कितने उदास थे हम लोग
जिनका सूझा न कुछ जवाब हमें
उन सवालों पे हँस दिए हम लोग
अब भी प्यारी हैं बेड़ियां हमको
हैं न जाहिल पढ़े-लिखे हम लोग
अब के हारे तो टूट जाएँगे
जीत जाएँ ख़ुदा करे हम लोग