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मुहल्ला है जरा
आवाज़ कम कर
 
चाय पीने पर निकलती
भी नहीं हैं चुस्कियां,
भी नहीं कोई घड़ी
चलती निरन्तर
 
फुसफुसातीं हैं महज़ अब
पायलें औ चूड़ियां,
वाले मन
हुए हैं ईंट पत्थर
 
रात दिन बस पोपले मुख
बुदबुदाहट, आहटें
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