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"सुबह गए थे / नईम" के अवतरणों में अंतर

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09:54, 14 मई 2018 के समय का अवतरण

सुबह गए थे-
साँझ पड़े वो आए फिर देवास लौटकर।
क्यों, कैसे, किस तरह आ गए, कौन बताए-
बिना काम के परेशान हैं लोग व्यर्थ में।
निखद चाकरी के पींजन पर
आए हैं वो प्राण ओंटकर।

निर्विध्या के तीर पठारों पर परवश-से
शासक की मनमानी से होकर निर्वासित,

पड़े रहे (हम) वो यक्षमना अलका से बाहर-
परदेसों में लिए समय घटिया अभिशापित।
चिरइ-पखेरू घर क्या आए-
आये फिर विश्वास लौटकर।

खुली जेल से बंद घरेलू में आने का
क्या मक़सद है? पूछ रहे वो मुंसिफ जूरी।

खाँ साहब या फिर कुमार जी क्या बोलेंगे-
यह कस्बा हर समय रहा उनकी मज़बूरी।
इसी धरातल भावभूमि पर
आए हैं बनवास लौट घर।

सुबह गए थे-
साँझ पड़े वो आए फिर देवास लौटकर।