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"और आगे और दूर / रामइकबाल सिंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर

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और आगे और दूर,
 
और आगे और दूर,
 
गान के बाद गान।
 
गान के बाद गान।
 
नील घनपटल में कौन तुम दामिनी
 
बागीश्वरी: तीन साल
 
 
कौन तुम निरुपमे देवि करवानिी
 
नौल घनपटल में दमकती दामिनी?
 
 
उद्गीति साम की, शक्ति तुम प्राण की,
 
ध्वंसिनी मोह-मद-दम्भ-अभिमान की।
 
शिवा, दिशावेशा, अजा, अपराजिता,
 
महाभावरूपा, नवराग र´्जिता।
 
 
सिद्धि तुम, तुष्टि तुम, परागतिपावनी,
 
तेजःप्रकाशिनी, श्रुतिमौलिमालिनी।
 
उष्णता अग्नि की कल्याणकारिणी,
 
गाथा पुराण की तुम चन्द्रभालिनी।
 
 
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18:28, 18 मई 2018 के समय का अवतरण

खोया-सा रहता अपने ही में,
चिन्तित और चिन्ता क्या,
यह भी नहीं जानता,
सहसा न जाने कब किसी दूर दिशा से,
गगन को अवगुंठन अर्पित कर।

भेद को निगल कर,
रात उतर आती है,
ऐसा क्यों होता है?
बोध को लगता आघात है,
लौट आती वाणी,
कुछ कहने की इच्छा से,
अपने निवासरूप वृक्ष पर।

जानी नहीं जा सकती बात यह,
कहीं नहीं जा सकती बात यह,
ज्ञात और ज्ञेय के दोनों ओर,
बिम्ब से परे प्रतिबिम्ब से।
अन्त क्या बहुधा विस्तार का?
और आगे और दूर,
गान के बाद गान।