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"ललकार / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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तम चीर कर जन-शक्ति का सूरज निकलता है, <br>
 
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चट्टान जैसे हाथ उठते हैं <br>
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फ़ौलाद से दृढ़ हाथ उठते हैं <br>
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अमन के शत्रु से जो छीनते हथियार हैं ! <br>
 
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हमारे संगठित बल की यही ललकार है ! <br>
 
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लो रुक गया रक्तिम प्रखर सैलाब का पानी, <br>
 
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अब दूर होगी आदमी की हर परेशानी ! <br>
 
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सूखी लताएँ लहलहाती हैं, <br>
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नव-ज्योति सागर में नहाती हैं,<br>  
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खुशी के मेघ छाये हैं, बरसता प्यार है ! <br>
 
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हमारे संगठित बल की यही ललकार है ! <br>
 
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19:32, 16 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

शैतान के साम्राज्य में तूफ़ान आया है,
जो ज़िन्दगी को मुक्ति का पैग़ाम लाया है !
इंसान की तक़दीर को बदलो,
भयभीत हर तस्वीर को बदलो,
हमारे संगठित बल की यही ललकार है !
मासूम लाशों पर खड़ा साम्राज्य हिलता है,
तम चीर कर जन-शक्ति का सूरज निकलता है,

चट्टान जैसे हाथ उठते हैं
फ़ौलाद से दृढ़ हाथ उठते हैं

अमन के शत्रु से जो छीनते हथियार हैं !
हमारे संगठित बल की यही ललकार है !
लो रुक गया रक्तिम प्रखर सैलाब का पानी,
अब दूर होगी आदमी की हर परेशानी !

सूखी लताएँ लहलहाती हैं,
नव-ज्योति सागर में नहाती हैं,

खुशी के मेघ छाये हैं, बरसता प्यार है !
हमारे संगठित बल की यही ललकार है !