भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धीरज / रुस्तम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |अनुवादक= |संग्रह=रुस्तम क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:58, 3 जून 2018 के समय का अवतरण

तुम्हारे नहीं होने, नहीं आने पर मुझे बहुत धीरज से सोचना है।

तुम नहीं हो, नहीं आओगी मुझसे मिलने — इस ज्ञान को मुझे बहुत धीरज से पकाना है,
उसे
रस में
बदल जाने देना है।

रस को
धीरे-धीरे,
बहुत धीरज से
सोखना है।